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Geo Vastu
 

सूर्य पूर्व से उदय होता है एवं पश्चिम में अस्त, जिस गतिमान से सूर्य पूर्व से पश्चिम में पहुंचता है उस गतिमान से दिनभर की दिनचर्या को व्यवस्थित करने की कला का नाम ‘वास्तु’ है |

वास्तु शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘वस्’ शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'निवास की भूमि' से है अर्थात ऐसी भूमि जो सुख, शान्ति, समृद्धि ला सकें | आज के आधुनिक वास्तु शास्त्रियों ने भूमि को छोड़कर सिर्फ भवन विन्यास (Orientation) को ही वास्तु मान लिया है | हम सभी जानते हैं कि भूमि के अंतरंग में छुपी भूगर्भीय ऊर्जा (Land Energy), ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Cosmic Energy) से समन्वय करके नवीन ऊर्जा का निर्माण करती है | ऊर्जा का निर्बाध गति से आवागमन होना ही ‘वास्तु’ है | ज्यो वास्तु इस नवीन ऊर्जा पुंज को प्रयोग करने की कला है |

ज्यो वास्तु भारतीय संस्कृति से उत्पन्न वास्तु को उद्घाटित करता है | वास्तु के सिद्धांत भौगोलिक स्थिति पर आधारित होते हैं जैसे फेंग शुई वास्तु चीन जैसे देश के लिए तो सही हो सकता है परंतु भारत की भौगोलिक स्थिति चीन से विपरीत है, अतः वास्तु के सिद्धांत भारत के लिए अलग है |

भारतीय शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री आदिनाथ जी ने अपने पुत्रों को सभी विद्याओं में निपुण किया था, जिसमें श्री विश्वकर्मा जी को वास्तु विद्या का संपूर्ण ज्ञान दिया था| भारतीय इतिहास के अनुसार भी वास्तु के प्रथम प्रवर्तक श्री विश्वकर्मा जी ही थे |

वास्तु विद्या प्राकृतिक संसाधनों को आधार मानकर मानव को सुख- शांति- समृद्धि प्रदान करने में सहायता करती है |

 
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ज्यो वास्तु, श्री विश्वकर्मा प्रकाशजीग्रंथ, श्री भद्रबाहु संहिता जी ग्रंथ, श्री ज्ञानार्णव जी ग्रंथ जैसे वास्तु के प्राचीनतम ग्रंथों में बताए गए तथ्यों पर कार्य करता है |

सामान्यतः वास्तु में दिशा को ही महत्व दिया जाता है, जबकि यथार्थ यह है कि दिशा से कहीं ज्यादा भूगर्भीय ऊर्जामहत्व रखती है, जैसे मानव की ऊपरी संरचना से ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी अंतरात्मा होती है | जिस तरह पंच तत्त्व से मानव शरीर का निर्माण हुआ है, इसी तरह वास्तु अर्थात ऐसी संरचना का निर्माण करना जिससे अपनी भावना व्यवहार पर नियंत्रण पवन द्वारा हो सके| आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी जी ने ‘अष्टांग निमित्त’ के ‘भूमि निमित्त’ में भूमि के प्रकार और गुण धर्मों का वर्णन किया है | ज्यो वास्तु ने भी शोध कर के यह पाया कि वास्तु में 70% योगदान भूमिगत ऊर्जा का होता है एवं अन्य सभी घटकों का मात्र 30% होता है, तदनुरूप ज्यो वास्तु में वास्तु संबंधी कार्य किये जाते है |

ज्यो वास्तु के मूल घटक निम्न है -

  • द्रव्य - द्रव्य वास्तु का अभिप्राय भूमि क्रय करने में व्यय की जाने वाली राशि की गुणवत्ता से है |
  • क्षेत्र - क्षेत्र वास्तु का अभिप्राय भूमि के गुणघर्म से है | यह सुनिश्चित किया जाना कि जिस क्षेत्र का चयन करने जा रहे है, उस भूमि में नकारात्मक ऊर्जा या शल्य तो नहीं है
  • काल - काल वास्तु का अभिप्राय चयनित भूमि पर कार्य प्रारम्भ करने के शुभ मुहूर्त से है |
  • भाव - भाव वास्तु का अभिप्राय शिल्पी के निर्माण करते वक्त शुद्ध भावों की प्रधानता से है |

निष्कर्षतः प्रकृति और मानव में सही संबंध स्थापित करने की स्थापत्य कला का नाम है वास्तु

ज्यो वास्तु, G.V.S.R.C. समूह का एक हिस्सा है | गुरु जी डॉ. राजेंद्रजी जैन के नेतृत्व में ज्यो वास्तु, सम्पूर्ण विश्व में बड़े पैमाने पर सभी के लिए सुख- शान्ति एवं समृद्धि के उद्देश्य से अथक प्रयास कर रहा हैं| ज्यो वास्तु परिवार 'वसुधैव कुटुम्बकम' की मान्यता के साथ कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि 'पूरा ब्रह्मांड मेरा परिवार है' | ज्यो वास्तु संस्था 2002 में राजेन्द्र जी जैन द्वारा जनहित में स्थापित की गई थी | इस संस्था में अनेकों भू जल स्त्रोत की खोज public health engineering के लिए एवं अनेको किसानों के साथ साथ पन्ना नेशनल पार्क में भी अपनी बुद्धिमता एवं नेकदिल का परिचय देते हुए अपनी सेवाएं प्रदान की | भारत मे जानी मानी संस्था है वास्तु के क्षेत्र में अपना एक मजबूत स्थान बनाया है |